Loading...

एल.ई.सी. 2017 में मैंने कोर्स के दौरान पढ़ने से जुडी गतिविधियों के बारे में कई लेख पढ़े| जिससे कि बच्चों में किस प्रकार पढ़ने की क्षमता विकसित होती है इस विषय पर मेरी समझ काफी मजबूत हुई| सुजाता जी के आलेख “पठन से पाठक का विकास” में वे “द आर्ट ऑफ़ टीचिंग रीडिंग” का संदर्भ देते हुए कहती हैं कि,

“बच्चे गाये बिना गाना नहीं सीख सकते, लिखे बिना लिखना नहीं सीख सकते और पढ़े बिना पढ़ना नहीं सीख सकते|”
इस बात से मेरे मन में जो प्रश्न उभर रहा था वो यह था की कोई भी कौश्लात्मक कार्य किये बिना नहीं सीखा जा सकता और उसे करने के लिए आवश्यक है कि पहले उसे क्यों करे उसकी जरुरत महसूस होना चाहिए, तो ये जरूरतें कैसे महसूस हों?

पढना भी एक कौशल है पर पढ़ने की जरुरत कैसे महसूस हो व बच्चों में पढ़ने की प्रवृत्ति विकसित करने में कौनसी चीज़ें मदद करती हैं?
रीड अलाउड पर लिए गए विभिन्न सत्रों और अवलोकनों से ये समझ आया है की रीड अलाउड की प्रक्रिया काफी हद तक बच्चों में पढ़ने की प्रवृत्ति को विकसित करने में मदद करता है| जिसके कुछ उदाहरण में देना चाहूंगी

मुस्कान द्वारा संचालित नवग्रह बस्ती के पुस्तकालय में मैंने “ओ हरियल पेड़” कहानी पढ़कर सुनायी| जिस समूह में कहानी सुनाई गई उस समूह में 5 बच्चे थे जिनकी उम्र 4-6 वर्ष होगी और २ बच्चे तो ऐसे थे जो स्कूल भी नहीं जाते थे| कहानी सुनाने के बाद बाबू ने कहा मुझे ये कहानी पढ़ना है उसकी उम्र 5-6 वर्ष होगी और अभी उसने स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया है| मैंने उसे किताब दे दी उसने सबसे पहले किताब का नाम पढ़ा उसके बाद उन दो पन्नो को उसने को देखकर छोड़ दिया जहाँ कुछ भी लिखा नहीं था| फिर जहाँ से चित्र और टेक्स्ट शुरू होता है वहां से उसने कहानी पढ़ना शुरू किया उसने चित्र देखते हुए|

पूरी कहानी सही सही पढ़कर सुनाई| बस कहीं कहीं वो कुछ शब्दों की जगह अपने शब्द जोड़ रहा था या पूछता जा रहा था| जैसे कहानी में एक जगह ग्वाला शब्द था उसने उसे पूछ क्या लिखा है? वो ठीक वैसे पढ़ रहा था जैसे की लिखा हुआ पढ़ रहा हो पर वो लिपि नहीं पहचान रहा था बल्कि जो चित्र थे उनको देखते हुए सुनाये गए वाक्यों को याद करके पढ़ रहा था| पूरी कहानी पढ़ लेने के बाद बड़े गर्व के साथ उसने साथ बैठे अपने दोस्त को कहा “ देखा मैंने पूरी कहानी पढ़ ली|” उस किताब को पढने के बाद उसने और भी दो किताबें खुद से पढ़ने के लिए चुनी, इस बार उसके पास कुछ भी याद करने के लिए नहीं था क्योंकि उसने इस बारे में किसी से नहीं सुना था कि इस किताब में क्या लिखा है पर दो अति महत्वपूर्ण चीजें उसके पास उपलब्ध थी जो उसे किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करने को काफ़ी थी, एक तो उसके द्वारा हाल ही में पढ़कर सुनाने से मिला पढ़ लेने का आत्मविश्वास और दूसरा किताब के चित्र जिनके आधार पर वो अनुमान लगाते हुए पढ़ रहा था| इस बार उसने एक बड़ी किताब चुनी जिसमें की टेक्स्ट ज्यादा और चित्र कम थे| 15 – 20 मिनट तक वो अपने मन से सोच सोच कर पढ़ता रहा और चित्रों के आधार पर उसने अपनी ही कहानी गढ़ ली|

अक्सर ही मैंने यह देखा है की जब भी हम कक्षा में कोई सचित्र कहानी सुनाते हैं तो वो बच्चे भी उस किताब को पढ़ने का अभ्यास करते हैं जो कि पढ़ना नहीं जानते, बल्कि ये भी देखा गया है की तीन-चार साल के बच्चे जो स्कूल भी नहीं जाते वे भी यही प्रक्रिया दोहराते हैं| पढ़कर सुनाये गए वाक्यांश कुछ हद तक उनकी स्मृति में रहते हैं जिसे वे किताब में उपलब्ध चित्रों की मदद से पुनः अपने शब्दों में रच कर पूरी कहानी पढ़ लेते हैं| इतना ही नहीं वो उस कहानी को दूसरों को भी सुनाते हैं| बच्चे जो बोलते हैं कई बार वो ठीक वैसा ही होता है जैसा की किताब में लिखा होता है| बच्चे जब पढने की प्रक्रिया को दोहराते हैं तो वो ठीक उसी तरह करते हैं जिस तरह की हम बड़े लोग टेक्स्ट पर उंगली रखते हुए उनको पढ़कर सुनाते हैं|

इस ही तरह कई ऐसे छोटे बच्चे हैं जो पढ़ना नहीं जानते पर पुस्तकालय आते हैं बड़ी रूचि से किताबें देखते है| कहानी सुनते हैं और किताबें पढने का आभ्यास करते हैं| किताबें इशु करवाकर घर भी ले जाते हैं| 3 ,4 वर्ष के छोटे बच्चे भी पुस्तकालय आतें हैं कितबों को उलटे पलटते हैं चित्रों को देखते हुए कुछ कुछ बड़badaateबड़ाते रहते हैं| यह एक तरह से बच्चों में पढ़ने के प्रति विकसित हो रही रूचि की ओर इशारा है|

एक बार जब मैं बिसन खेड़ी पुस्तकालय पहुंची तब दो बच्चे “कजरी गाय फिसलपट्टी पर” कहानी की किताब देख रहे थे और उसके चित्रों पर बातें कर रहे थे| मैं दुसरे बच्चों के पास बैठ कर उन दोनों की बातें सुन रही थी| असल में वो चित्रों के माध्यम से उस कहानी को पढ़ रहे थे| उनको सुनने के कुछ ही देर में यह समझ आ गया कि वो दोनों ही पढना नहीं जानते| पर उसके कुछ ही देर पहले पुस्तकालय वाली दीदी ने वो कहानी पढ़कर सुनायी थी इसलिए बच्चे याद करते हुए उस कहानी को पढ़ने का बस आभ्यास कर रहे थे|
यहाँ ये समझ आता है की बच्चे चित्रों को देखकर कोई अर्थ बना रहे हैं और उन पर आपस में बात भी कर रहें हैं जो की चित्रों को देखकर उनके मन में आ रहे विचारों की अभिव्यक्ति है| डेनिस वान स्टोकर भी कहती हैं की पढ़ने का मतलब है दुनिया को समझना और खुद को अभिव्यक्त करना| इन अर्थों में देखा जाये तो चित्रों पर बात करना और प्रतिक्रया देना पढ़ना ही हुआ|

चित्रों को पढ़ना ही पढ़ने का शुरुवाती चरण होता है|

“पढ़ने की प्रक्रिया को लेकर पिछले कई दशकों में किये गए शोधों से यह साबित किया गया है कि पढ़ना लिखी गई सामग्री से अर्थ निर्माण करने की एक प्रक्रिया है|”

इन अर्थों में अगर देखा जाये तो जब बच्चे चित्र देखकर उन्हें पढ़ते हैं और कोई सार्थक कहनी बना लेते हैं तो यह पढ़ना ही है|

अगर हम अपने पढ़ने की प्रक्रिया पर गौर करें तो ये समझ आता है की हम जब कोई लिपि पढ़ते हैं तो हमारे मन में उस परिस्थिति का चित्र बनता जाता है जो की लिपि के माध्यम से प्रदर्शित किया गया होता है, क्योंकि हम लिपि को भली भांति जानते हैं पर लिपि जो कह रही है उसे हमने नहीं देखा पर हम अपने मन में उसका एक चित्र लिपि के माध्यम से बनाकर उसका अर्थ ग्रहण करते हैं| बच्चे जब सचित्र किताबें पढ़ते हैं तो उनके साथ इसके विपरीत प्रक्रिया होती है वो वास्तविक चित्रों की मदद से प्रतीकों को समझ रहे होते हैं| क्योंकि वे चित्रों से भली भांति परिचिति हैं पर लिपि उनके लिए नई है, वे अक्षरों को नहीं पहचानते पर चित्रों को जानते है क्योंकि वे रोज अपने आस पास उन संरचनाओं को देखते हैं| किताबों में उन संरचनाओं को वो लिखे हुए शब्दों से जोड़ पाते हैं इस तरह वे सार्थक रूप में लिखे हुए को समझ पाते हैं जो की आगे जाकर उन्हें पढ़ना सीखने में काफी मदद करता है| रीड अलाउड इस प्रक्रिया में एक मददगार टूल साबित होता है क्योंकि जब बच्चा कुछ लिखा हुआ सुनता है तो वो उसकी स्मृति में रहता है किताब के चित्र उसे वो याद रखने में मदद करते हैं और चित्रों के साथ साथ वो लिखावट को लगातार देखते हैं| जिससे कि लिखित शब्दों के चित्र उनकी यादाश्त में जमा होते जाते है और जब वो पढ़ने लिखने जैसी प्रक्रियाओं से जुड़ते हैं तो बहुत जल्दी उन आकृतियों को अर्थ सहित पकड़ लेते हैं|

पढ़ने को लेकर फ्रैंक स्मिथ का विचार भी यही कहता है की:

“ पढ़ना दुनिया मैं सबसे स्वाभाविक प्रक्रिया है| बच्चों की दुनिया में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं होता| दुनिया की प्रत्येक वास्तु प्राकृतिक है| छपी हुई सामग्री दुनिया का ही एक अन्य पहलु है|”

इस अधार पर भी यह कहा जा सकता है की जब बच्चा कोई चित्र देखता है तो सबसे पहले वह उसे अपने परिवेश से जोड़ता है और उसके बारे में उसकी जो राय होती है वो उसके अनुभवों से जुड़ी होती है| उदाहरण के लिए एक बच्चा जिसने साड़ी पहने सिर्फ अपनी माँ या दादी नानी को देखा है तो वो साड़ी पहनी महिला का चित्र दिखाने पर माँ या नानी दादी कहेगा इसके विपरीत यदि हम किसी बड़े को वो चित्र दिखाएंगे तो उसका जवाब अधिकांशतः एक महिला होगा क्योंकि सारी महिलाओं का पहनावा है| दोंनो ही जवाब अपने अपने अनुभवों से जुड़े है| इस तरह बच्चे जब छपे हुए चित्रों को देखकर उन्हें पढ़ने का अभ्यास करते हैं और खुदकी की कहानी बनाते हैं तो ये भी पढ़ना ही कहा जायेगा| क्योंकि उन चित्रों से वो कुछ अर्थ बना रहें है|

उपरोक्त अनुभवों के आधार पर हम कह सकते हैं की रीड अलाउड के माध्यम से बच्चों को विभिन्न चित्र पुस्तकों से परिचित करवाया जा सकता है| चित्रों और सुनी गई कहानियों का आकर्षण उनमें उस किताब को खुद देखने की व पढ़ लेने की इच्छा पैदा करता है| इस तरह बच्चे लगातार किताबों को देखतें हैं उनके चित्रों को देखते हैं समझते हैं उन पर बातें करते हैं और अपनी कहानियाँ बनाते हैं| उनके लिए ये पढ़ना ही है|

डेनिस वान स्टोकर के आलेख में उन्होंने ये स्पष्ट किया है कि, “विजुअल रीडिंग की लम्बी अवधि आने वाले समय में पाठ आधारित सामग्री पढ़ने के लिए बहुत कुशल अधार व खुराक का काम करेगी|”

चित्रों के माध्यम से पढ़ने की प्रक्रिया स्वतंत्र रूप से पढ़ने की और ले जाने का पहला कदम है| क्योंकि चित्रों को पढना ही सही मायनो में पढना है| रीड अलाउड इस प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि रीड अलाउड के माध्यम से बच्चों को विभिन्न सचित्र पुस्तकों से परिचित कराया जा सकता है| जब हम कक्षा में कुछ पढ़कर सुनते हैं तो बच्चों की यह समझ विकसित हो रही होती है की जो बोला जा रहा है वही लिखा है और चित्र उन्हें बोले गए वाक्यों को समझने मैं मदद करते है| एक बार सुन लेने के बाद जब बच्चे दुबारा उस किताब को देखते हैं तो वे वो सारी बातें जो सुनी थी उसे किताब देखते हुए याद करते हैं और उस किताब को अपने शब्दों में पढ़ लेते हैं उनके लिए यह अनुभव किसी अच्छे पाठक द्वारा कोई दिलचस्प कहानी पढ़ लेने के अनुभव से जरा भी कम नहीं होता|

सन्दर्भ:
“पढ़ना कुछ सैद्धांतिक और व्यवाहरिक पहलु”| बीरेंद्र सिंह एवं रजनी
बच्चों के विकास में साक्षरता का महत्व,बौद्धिक,भावनात्मक एवं सामजिक आयाम| डेनिस वान स्टोकर
“अपने शब्दों को पढने और लिखने की शुरुवात” जैन साही
“पठन से पाठक का विकास” सुजाता नरोन्हा
नीतू यादव, मुस्कान संस्था, भोपाल के शिक्षा समूह में पिछले १२ वर्षों से कई कार्यक्रमों का हिस्सा रहीं है| वर्तमान में बतौर पुस्तकालय समन्वयक काम कर रही हैं| २०१७ में नीतू LEC (हिंदी) की प्रतिभागी थी.

Of Boxes and Labels

Of Boxes and Labels

Flyaway Boy is a story about a boy who doesn’t fit in – not in his school, among friends and sometimes even struggles to feel part of his family…

Swaha Sahoo Parag Reads 27 November 2020

Pyari Madam

Pyari Madam

Pyari Madam is the story of a young school girl who interacts with her teacher through her diary, where she opens her heart out…

Swaha Sahoo Parag Reads 31 July 2020